क्या हैं महाविद्याएँ?
महाविद्याएँ तांत्रिक परंपरा की दस प्रमुख देवियाँ हैं, जिन्हें अद्वितीय शक्तियों और गुणों के लिए पूजा जाता है। ये दस देवियाँ अद्वितीय हैं और प्रत्येक देवी का अपना एक विशिष्ट रूप और महत्व है। महाविद्याओं का पूजन न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए, बल्कि जीवन की विभिन्न समस्याओं और चुनौतियों से निपटने के लिए भी किया जाता है। महाविद्याओं की पूजा से मानसिक शांति, आत्मविश्वास और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
दस महाविद्या, जिन्हें दस महान ज्ञान के रूप में भी जाना जाता है, में शामिल हैं:
- काली: शक्ति और संहार की देवी। पूजन में काली मंत्रों का जप और काली यंत्र का उपयोग होता है।
- तारा: ज्ञान और वाणी की देवी। तारा मंत्र और तारा यंत्र का पूजन किया जाता है।
- त्रिपुरसुंदरी: सौंदर्य और प्रेम की देवी। षोडशी मंत्र और यंत्र का उपयोग होता है।
- भुवनेश्वरी: ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी। भुवनेश्वरी मंत्र और यंत्र से पूजन किया जाता है।
- भैरवी: संहार और विनाश की देवी। भैरवी मंत्र और यंत्र का उपयोग होता है।
- छिन्नमस्ता: आत्मबलिदान और निस्वार्थता की देवी। छिन्नमस्ता मंत्र और यंत्र से पूजा की जाती है।
- धूमावती: विधवा और दुःख की देवी। धूमावती मंत्र और यंत्र का उपयोग होता है।
- बगलामुखी: शत्रुओं का नाश करने वाली देवी। बगलामुखी मंत्र और यंत्र का पूजन किया जाता है।
- मातंगी: कला, संगीत और ज्ञान की देवी। मातंगी मंत्र और यंत्र से पूजा होती है।
- कमला: धन, वैभव और समृद्धि की देवी। कमला मंत्र और यंत्र का उपयोग होता है।
महाविद्याओं की पूजा क्यों करें?
महाविद्याओं की पूजा से व्यक्ति को कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। ये देवियाँ व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक, आध्यात्मिक और भौतिक समस्याओं को हल करने में सहायता करती हैं। महाविद्याओं का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में संतुलन, सुख और समृद्धि आती है।
- मानसिक शांति: महाविद्याओं का पूजन मानसिक तनाव और चिंता को दूर करता है।
- आत्मविश्वास: इन देवियों का आशीर्वाद आत्मविश्वास और साहस को बढ़ाता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: महाविद्याओं का पूजन सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति का स्रोत बनता है।
- सफलता और समृद्धि: जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता और आर्थिक समृद्धि प्राप्त होती है।
दस महाविद्या कवच
दस महाविद्या कवच का महत्व बहुत अधिक है। यह कवच देवी महाविद्याओं की कृपा को आकर्षित करता है और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है। कवच धारण करने से शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है और आध्यात्मिक प्रगति होती है। प्रत्येक देवी के विशेष मंत्र और यंत्र का उपयोग कवच में किया जाता है, जिससे पूजा और भी प्रभावशाली हो जाती है।
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दस महाविद्याएँ और उनकी पूजा विधि
काली देवी तांत्रिक परंपरा में शक्ति और संहार की प्रमुख देवी मानी जाती हैं। वे अंधकार, मृत्यु और भय को नष्ट करने वाली देवी हैं। काली का रूप भयंकर और उग्र है, उनका काला रंग और खुली जीभ डर का प्रतीक है। वे अपने चार हाथों में तलवार, सिर, मुद्रा और अभयमुद्रा धारण करती हैं। काली देवी का पूजन करने से भय, रोग और शत्रुओं का नाश होता है और व्यक्ति को साहस और शक्ति प्राप्त होती है।
मंत्र: “ॐ क्रीं काली”
पूजा विधि: काली देवी का पूजन विशेष रूप से अमावस्या की रात को किया जाता है। पूजन के लिए काले वस्त्र धारण करें और काले तिल, गुड़, और काले फूलों का भोग लगाएं। काली यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। काली मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से अपनी मनोकामना प्रकट करें। काली देवी के पूजन से मानसिक शांति और साहस की प्राप्ति होती है।
तारा देवी ज्ञान, वाणी और सृष्टि की देवी मानी जाती हैं। वे समुद्र की देवी भी हैं और जीवन के रहस्यों को जानने में मदद करती हैं। तारा का रंग नीला है और वे नीले वस्त्र धारण करती हैं। उनके चार हाथों में कमल, खड्ग, कपाल और अभयमुद्रा होती है। तारा देवी का पूजन विद्या, वाणी, और आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
मंत्र: “ॐ तारा तुरी विद्या”
पूजा विधि: तारा देवी का पूजन पूर्णिमा के दिन विशेष फलदायी होता है। पूजा के लिए नीले वस्त्र पहनें और नीले फूलों, मिठाई, और दही का भोग लगाएं। तारा यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। तारा मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से ज्ञान और विद्या की प्राप्ति की प्रार्थना करें। तारा देवी के पूजन से व्यक्ति की बुद्धि और वाणी में सुधार होता है।
त्रिपुरसुंदरी देवी सौंदर्य, प्रेम और समृद्धि की देवी हैं। उन्हें षोडशी के नाम से भी जाना जाता है। त्रिपुरसुंदरी का स्वरूप अत्यंत सुंदर और मोहक है, वे लाल वस्त्र धारण करती हैं और कमलासन पर विराजमान रहती हैं। उनके चार हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण होते हैं। त्रिपुरसुंदरी का पूजन प्रेम, सौंदर्य, और जीवन में समृद्धि के लिए किया जाता है।
मंत्र: “ॐ षोडशी नमः”
पूजा विधि: त्रिपुरसुंदरी देवी का पूजन शुक्रवार को करना विशेष लाभकारी होता है। पूजा के लिए लाल वस्त्र पहनें और सुगंधित फूल, चंदन, और मिठाई का भोग लगाएं। त्रिपुरसुंदरी यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। षोडशी मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से प्रेम और समृद्धि की प्रार्थना करें। त्रिपुरसुंदरी देवी के पूजन से जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
भुवनेश्वरी देवी ब्रह्मांड की अधिष्ठात्री देवी हैं। वे समस्त सृष्टि की रचना और पालन करने वाली देवी हैं। भुवनेश्वरी का स्वरूप लाल और तेजस्वी है। वे चार हाथों में पाश, अंकुश, अभयमुद्रा और वरदमुद्रा धारण करती हैं। भुवनेश्वरी देवी का पूजन जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने और समस्त सुखों की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
मंत्र: “ॐ भुवनेश्वरी नमः”
पूजा विधि: भुवनेश्वरी देवी का पूजन सोमवार को विशेष फलदायी होता है। पूजा के लिए लाल वस्त्र पहनें और लाल फूल, मिठाई और चंदन का भोग लगाएं। भुवनेश्वरी यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। भुवनेश्वरी मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से समस्त सुखों की प्राप्ति की प्रार्थना करें। भुवनेश्वरी देवी के पूजन से सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में सुख और समृद्धि आती है।
भैरवी देवी संहार और विनाश की देवी हैं। वे भयंकर और उग्र रूप में प्रकट होती हैं और नकारात्मक शक्तियों का नाश करती हैं। भैरवी का स्वरूप अत्यंत डरावना होता है, वे रक्तवर्ण और उग्र नेत्रों से युक्त होती हैं। उनके चार हाथों में तलवार, त्रिशूल, खोपड़ी और अभयमुद्रा होती है। भैरवी देवी का पूजन नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा और साहस प्राप्त करने के लिए किया जाता है।
मंत्र: “ॐ भैरवी नमः”
पूजा विधि: भैरवी देवी का पूजन मंगलवार या शनिवार को विशेष लाभकारी होता है। पूजा के लिए लाल या काले वस्त्र पहनें और लाल फूल, गुड़ और काले तिल का भोग लगाएं। भैरवी यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। भैरवी मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से सुरक्षा और साहस की प्रार्थना करें। भैरवी देवी के पूजन से व्यक्ति नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रहता है और साहस प्राप्त करता है।
छिन्नमस्ता देवी आत्मबलिदान और निस्वार्थता की देवी हैं। उनका स्वरूप अत्यंत उग्र और भयंकर है, वे अपने ही सिर को काटकर रक्तपान करती हैं। छिन्नमस्ता देवी का पूजन आत्म-नियंत्रण, आत्मबलिदान और शक्ति की प्राप्ति के लिए किया जाता है। वे तीन नेत्रों वाली और चार हाथों में तलवार, सिर, खप्पर और अभयमुद्रा धारण करती हैं।
मंत्र: “ॐ छिन्नमस्तिकायै नमः”
पूजा विधि: छिन्नमस्ता देवी का पूजन अष्टमी या चतुर्दशी के दिन करना विशेष फलदायी होता है। पूजा के लिए लाल या पीले वस्त्र पहनें और लाल फूल, मिठाई और गुड़ का भोग लगाएं। छिन्नमस्ता यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। छिन्नमस्ता मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से आत्म-नियंत्रण और शक्ति की प्रार्थना करें। छिन्नमस्ता देवी के पूजन से व्यक्ति को आत्मबलिदान और निस्वार्थता की भावना प्राप्त होती है।
धूमावती देवी विधवा और दुःख की देवी मानी जाती हैं। उनका स्वरूप अत्यंत भयंकर और डरावना है, वे विधवा के रूप में प्रकट होती हैं। धूमावती देवी का पूजन दुःख, शोक और कष्टों को दूर करने के लिए किया जाता है। वे धुएं से घिरी हुई और अस्थि माला धारण किए रहती हैं। उनके हाथों में पाश और खप्पर होता है।
मंत्र: “ॐ धूमावत्यै नमः”
पूजा विधि: धूमावती देवी का पूजन विशेष रूप से अमावस्या के दिन करना शुभ होता है। पूजा के लिए सफेद वस्त्र पहनें और सफेद फूल, मिठाई और चावल का भोग लगाएं। धूमावती यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। धूमावती मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से दुःख और कष्टों से मुक्ति की प्रार्थना करें। धूमावती देवी के पूजन से जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति होती है।
बगलामुखी देवी शत्रुओं का नाश करने वाली देवी हैं। वे पीले रंग की और पीले वस्त्र धारण करती हैं। उनका स्वरूप अत्यंत आकर्षक और उग्र होता है। बगलामुखी देवी का पूजन शत्रुओं से रक्षा, कानूनी मामलों में सफलता और जीवन में शांति प्राप्त करने के लिए किया जाता है। वे अपने हाथों में गदा और अभयमुद्रा धारण करती हैं।
मंत्र: “ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा”
पूजा विधि: बगलामुखी देवी का पूजन विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को करना लाभकारी होता है। पूजा के लिए पीले वस्त्र पहनें और पीले फूल, मिठाई और हल्दी का भोग लगाएं। बगलामुखी यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। बगलामुखी मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से शत्रु बाधाओं से मुक्ति की प्रार्थना करें। बगलामुखी देवी के पूजन से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन में शांति और सफलता प्राप्त होती है।
मातंगी देवी कला, संगीत और ज्ञान की देवी हैं। उनका स्वरूप हरा और शीतल होता है। मातंगी का पूजन कला, संगीत और ज्ञान की प्राप्ति के लिए किया जाता है। वे चार हाथों में वीणा, पुस्तक, जपमाला और अभयमुद्रा धारण करती हैं। मातंगी देवी का पूजन विशेष रूप से रचनात्मकता और मानसिक विकास के लिए किया जाता है।
मंत्र: “ॐ ह्रीं ऐं मातंग्यै नमः”
पूजा विधि: मातंगी देवी का पूजन बुधवार को विशेष फलदायी होता है। पूजा के लिए हरे वस्त्र पहनें और हरे फूल, फल और मिठाई का भोग लगाएं। मातंगी यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। मातंगी मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से कला, संगीत और ज्ञान की प्राप्ति की प्रार्थना करें। मातंगी देवी के पूजन से व्यक्ति की रचनात्मकता और मानसिक क्षमता में वृद्धि होती है।
कमला देवी धन, वैभव और समृद्धि की देवी हैं। उनका स्वरूप अत्यंत सुंदर और मोहक है। वे कमलासन पर विराजमान रहती हैं और चार हाथों में कमल, मुद्रा, अभयमुद्रा और वरदमुद्रा धारण करती हैं। कमला देवी का पूजन आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने और जीवन में समृद्धि लाने के लिए किया जाता है।
मंत्र: “ॐ श्रीं कमलायै नमः”
पूजा विधि: कमला देवी का पूजन शुक्रवार को करना विशेष लाभकारी होता है। पूजा के लिए पीले या लाल वस्त्र पहनें और कमल, पीले फूल, मिठाई और दूध का भोग लगाएं। कमला यंत्र का पूजन करते समय धूप, दीपक, और अगरबत्ती जलाएं। कमला मंत्र का 108 बार जप करें और देवी से धन और समृद्धि की प्रार्थना करें। कमला देवी के पूजन से जीवन में आर्थिक स्थिरता और समृद्धि आती है।